ज़िन्दगी की पटरियों पर से मौत की रेल गुज़र गई भूख और मजबूरी कुछ और बदनसीबों को निगल गई। जहॉं कुछ देर पहले तक शोर था आस भरी बातों का अब वहीं पर मरघट सी मनहूसियत पसर गई। रोटी-सब्ज़ी और सामान बिखर गया पटरियों पर इंसानी देह लेकिन पोटलियों में सिमट गई। कोरोना महामारी का तो फ़कत बहाना रहा हक़ीक़त में रोज़ी-रोटी की फिक्र ही इन गरीबों को निगल गई। ज़िन्दगी की पटरियों पर से मौत की रेल गुज़र गई भूख औ' मजबूरी कुछ और बदनसीबों को निगल गई।
डॉ॰ चित्रा राठौड़ एसोसियेट प्रोफ़ेसर ई-मेल: rathorechitra3@gmail.com
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